एक मासूम मुहब्बत पे मचा है घमसान
दूर तक देख समन्दर में उठा है तूफ़ान
एक लड़की थी सिखाती थी जो खिल कर हंसना
आज याद आई तो हो आई है सीली मुस्कान
एक वो मेला वो झूला वो मेरे संग तस्वीर
क्या पता खुश भी कहीं है के नहीं वो नादान
फिर से बचपन हो तेरा शहर हो और छुट्टियां हों
काश मैं फिर रहूँ कुछ रोज़ तेरे घर मेहमान
एक मुंडेर पे इक गाँव में इक नाम लिखा है
रोज़ उस में से ही खुलता है ये नीला असमान
('मैं और बोगनवीलिया' में से)
Saturday, July 18, 2009
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हुज़ूर आदाब अर्ज़ है !
ReplyDeleteआपको बारहा पढा है ....और हर बार
नयी ताज़गी महसूस की है...यही आपके
लेखन का कमाल है ...
ये शेर ख़ास तौर पर पसंद आया है
"एक वो मेला वो झूला वो मेरे संग तस्वीर
क्या पता खुश भी कहीं है के नहीं वो नादान"
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
---मुफलिस---
please visit 'aajkeeghazal.blogspot.com"
ReplyDeletefor tar`hi mushaayra...
i wish you to participate......
---MUFLIS---
kya baat hai sir
ReplyDeleteits excelent
bahut hi khoobsurat gazal
ReplyDeletemain to hamesha kahti rahi hoon
main aur bogan viliya jaisi gazal sangrah kam hi nikli houngi jiski har gazal mein baat hai har sher kamaal
anmol mitiyon ka kazana