Saturday, July 18, 2009

ग़ज़ल

रोज़ एल्बम से आ निकलती है
रोज़ तू मुझसे झगड़ा करती है

तेरी यादों की खोल कर एल्बम
रत मेरे सिरहाने रखती है

एक लम्हा बंधा है पल्ले से
जाने कब इसकी गाँठ खुलती है

कभी पुरख्वाब थी जो दिल की ज़मीं
तेरी यादों का पानी भारती है

इक घड़ी तेरे संग सदियों से
बस मुझे मिलती मिलती मिलती है

कितने लम्हे बरसते हैं दिल पर
शाख़-ए-माज़ी कोई लचकती है

तेरी खुश्बू की प्यासी शब, शब भर
मेरे सीने पे सर पटकती है

इतनी गर्मी में तेरी याद मुझे
जैसे शिमला में बर्फ़ गिरती है

('मैं और बोगनवीलिया' में से)

1 comment:

  1. KYA BAAT HAI SIR! YAADON KO DARSANE KA JO HUNNAR AAP KE PAAS HAI WO BAHUT MINDBLOWING HAI. AAP KE SHABAD HE YAADIEN BAN JATE HAIN. AAP KE SHABAD HE KABI KABI JEHAN SE NIKAL AATE HAI AUR KHUSHI DE JATE HAIN. AAPKI KALAM AUR QLAAM DONO SALAMAT RAHIEN.

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