Friday, July 10, 2009

नहीं जेहाद ये भाई..

नहीं जेहाद ये भाई...

तुझे इस बाग़-ए-दुनियां में खुदा-तआला ने भेजा है
तुझे इसकी हिफ़ाज़त करने और करवाने भेजा है

तू इसके पेड़-पौधे ख़ुद उजाड़े, अक्लमन्दी है ?
तू नन्हें बच्चों के माँ-बाप मारे, अक्लमन्दी है ?

ये कैसा चाचा-ओ-आक़ा सबक़ तुझको सिखाते हैं
वो तुझसे कुफ़्र करवाके तुझे काफ़िर बनाते हैं

बिसात-ए-मज़हबी-सियासत का इक मोहरा बनाते हैं
ख़ुदा-तआला की नज़रों में भी वो तुझको गिराते हैं

बहाना खून-ए-खल्क़त भी कहीं ईमान होता है ?
व मासूमों की जां लेना भला इस्लाम होता है ?

जो तुझसे तालिब-इल्मों को सिखाता है, ये भी सुन ले
नहीं मुआफ़ी मिलेगी उस ख़ुदा के दर से भी सुन ले !

नहीं जेहाद ये भाई, ये कोरा कुफ़्र है बेटा
कहाँ कुर्रान कहता है, ये किस आयत में है लिक्खा?

4 comments:

  1. Aap ki rachana bahut achchhi lagi...Keep it up....

    Regards..
    DevPalmistry : Lines teles the story of ur life

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  2. जो तुझसे तालिब-इल्मों को सिखाता है, ये भी सुन ले
    नहीं मुआफ़ी मिलेगी उस ख़ुदा के दर से भी सुन ले !..
    wah wah bahut sundar..
    aapka swagat hai janab
    dua karta hun aap khuub likhen behtar likhen.. mk

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  3. हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

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