Saturday, July 18, 2009

ग़ज़ल

एक मासूम मुहब्बत पे मचा है घमसान
दूर तक देख समन्दर में उठा है तूफ़ान

एक लड़की थी सिखाती थी जो खिल कर हंसना
आज याद आई तो हो आई है सीली मुस्कान

एक वो मेला वो झूला वो मेरे संग तस्वीर
क्या पता खुश भी कहीं है के नहीं वो नादान

फिर से बचपन हो तेरा शहर हो और छुट्टियां हों
काश मैं फिर रहूँ कुछ रोज़ तेरे घर मेहमान

एक मुंडेर पे इक गाँव में इक नाम लिखा है
रोज़ उस में से ही खुलता है ये नीला असमान

('मैं और बोगनवीलिया' में से)

किताब

वो एक किताब जो हम साथ पढ़ा करते हैं
सिरहाने नीचे वहीं की वहीं मिलेगी तुम्हें
वो ज़िन्दगी जिसे हम साथ जिया करते हैं
तुम्हारे पीछे वहीं की वहीं पड़ी है बंद

जहां से पन्ना मुड़ा देखो खोल लेना तुम

('एक चुटकी चाँदनी' से)

ग़ज़ल

रोज़ एल्बम से आ निकलती है
रोज़ तू मुझसे झगड़ा करती है

तेरी यादों की खोल कर एल्बम
रत मेरे सिरहाने रखती है

एक लम्हा बंधा है पल्ले से
जाने कब इसकी गाँठ खुलती है

कभी पुरख्वाब थी जो दिल की ज़मीं
तेरी यादों का पानी भारती है

इक घड़ी तेरे संग सदियों से
बस मुझे मिलती मिलती मिलती है

कितने लम्हे बरसते हैं दिल पर
शाख़-ए-माज़ी कोई लचकती है

तेरी खुश्बू की प्यासी शब, शब भर
मेरे सीने पे सर पटकती है

इतनी गर्मी में तेरी याद मुझे
जैसे शिमला में बर्फ़ गिरती है

('मैं और बोगनवीलिया' में से)

Saturday, July 11, 2009

शायर

एक शायर से आओ मिलवाऊं
जो कि अक्सर उदास होता है
देखकर कोई फूल हँसता हुआ
क्यूंकि ये आज देख सकता है
सूनी-सूनी उदास सी टहनी
कल नज़र आयेगी जो दुनिया को

सुनके खुशबू सी कोई मस्त हंसी
चंचल आँखों की बात पढ़ते हुए
इसकी पलकों से ओस झरती है
क्यूंकि ये आज समझ सकता है
आज-सा वक़्त कल कहाँ होगा

ये जो शायर उदास बैठा है
दो सदी पहले भी ये ज़िंदा था
तब इसे लोग 'कीट्स' कहते थे

(-जोन कीट्स की याद में)
('एक चुटकी चांदनी' से)

लॉज

जितने सर हैं यहाँ उतने ही हैं दिमाग़ यहाँ
कितनी आज़ादियाँ हैं पैक लॉज में इक साथ

किसी के रेडियो पे चल रहा है मैच कोई
चल रहा है कोई हंगामा साथ केबल पर
तो कोई झूमता आता है वॉकमैन के साथ

किसे है होश के कोई उदास भी है यहाँ !

(-'एक चुटकी चाँदनी' में से )

Friday, July 10, 2009

नहीं जेहाद ये भाई..

नहीं जेहाद ये भाई...

तुझे इस बाग़-ए-दुनियां में खुदा-तआला ने भेजा है
तुझे इसकी हिफ़ाज़त करने और करवाने भेजा है

तू इसके पेड़-पौधे ख़ुद उजाड़े, अक्लमन्दी है ?
तू नन्हें बच्चों के माँ-बाप मारे, अक्लमन्दी है ?

ये कैसा चाचा-ओ-आक़ा सबक़ तुझको सिखाते हैं
वो तुझसे कुफ़्र करवाके तुझे काफ़िर बनाते हैं

बिसात-ए-मज़हबी-सियासत का इक मोहरा बनाते हैं
ख़ुदा-तआला की नज़रों में भी वो तुझको गिराते हैं

बहाना खून-ए-खल्क़त भी कहीं ईमान होता है ?
व मासूमों की जां लेना भला इस्लाम होता है ?

जो तुझसे तालिब-इल्मों को सिखाता है, ये भी सुन ले
नहीं मुआफ़ी मिलेगी उस ख़ुदा के दर से भी सुन ले !

नहीं जेहाद ये भाई, ये कोरा कुफ़्र है बेटा
कहाँ कुर्रान कहता है, ये किस आयत में है लिक्खा?

AN EVENING SO CRIMSON...

AN EVENING SO CRIMSON...


Don't ask me whom I am befriends with these days
It's as if I've got all the thirst out of lakes.

An evening I had once so crimson, so red
Eversince my evenings are so desolate.

No use of the showers, now pouring now not
To heat oh the summer it rather does raise.

Strange is the piece of a cloudess, O sky
It lets you nor open and neither it rains.

O poet, who opens the way to your heart?
Who treads in and something from within creates.

( a new piece, sincere remarks awaited.)

ग़ज़ल

बात जो पानी में घुलती जाती गुरबानी में थी
बात वो बस तेरे ही चेहरा-ए-नूरानी में थी

एक मछली की तरह थी ज़िन्दगी तेरे बिना
ताज़ा पानी से निकल जो खौलते पानी में थी

अब कहाँ वो छुट्टियां और अब कहाँ बचपन के दिन
ज़िन्दगी थी चार दिन जो तेरी मेहमानी में थी

शहर में आकर तो हम भी कुछ कमीने हो गए
एक वो जाती रही जो बात नादानी में थी

हाँ बहुत सामान है खाने को पीने को यहाँ
एक भी डिश में नहीं जो बात गुडधानी में थी

एक ग़ज़ल

थक गया है दिल यहाँ रह-रह के बरबस
ढूँढने निकलेगा दुनियां फिर कोलंबस

एक लेडी-साइकल और एक बाइक
एक है चादर बिछी और एक थर्मस

इस क़दर जब मुस्कुरा के देखती हो
याद आता है मुझे कॉलेज का कैम्पस

हैं अलग टी.वी.अलग कमरों में दिल हैं
एक टी.वी.था गली में हम थे रस-मस

ये विचार और वो विचार ऊपर से नीचे
रात-दिन जारी ज़हन में एक सर्कस
(अप्रकाशित)