Tuesday, May 26, 2009

ग़ज़ल

वो तेरी उड़ती हुई ज़ुल्फ़ें झूलते हुए पाम
छुपा के रखी है मैंने वो डायरी में शाम

तुम आज याद बहुत आए मैं अकेला था
वही समय वही सिग्नल वहीँ था ट्रैफिक जाम

ये पोस्ट हो नहीं सकते ये आके ले जाओ
कुछ एक लम्हों के नीचे लिखा है तेरा नाम

ये चील-कौओं के जैसे जुटे हैं बीते पल
मचा है ज़हन के परदे पे बेतरह कोहराम

कहीं से उभरा तेरा चेहरा मेरी नींद गई
ये सपना हो नहीं सकता ये था कोई इल्हाम

Have English version of the nazm




O LIFE !
Holding my fingers, ahead by a step
Or a moment you're standing with feet on my feet
A moment you put hand on my eyes from back
Or surprise coming out from back of the door

O life, you never were so beautiful !

(self-translated Urdu nazm published in
'Poets International')
ज़िन्दगी

कभी तू उंगली पकड़ आगे-आगे चलती है
या मेरे पाँव पे रख पाँव खड़ी होती है
कभी पीछे से मेरी आँखों पे रख देती है हाथ
कभी दरवाज़े के पीछे से आ चौंकाती है

ज़िन्दगी पहले न तू इतनी खूबसूरत थी !
('एक चुटकी चांदनी' से )




















हर शाख-ए-फ़न अशआर से महका सकूँ तो बात है
और बस्ती-बस्ती ये महक फैला सकूँ तो बात है !

आने लगी है गैब से अब डाक तो अशआर की
ये चिट्ठियाँ घर-घर मगर पहुंचा सकूँ तो बात है!
सतीश 'बेदाग़'

My third book (2009), released and available.

My second book,ghazal collection(2005)

My first book of poems(1990)