Monday, November 9, 2009

ग़ज़ल

उठी जो शायरी अगर समझ ले लक्ष्मीबाई है
क़लम नहीं है हाथ में मिरे दियासलाई है

जो चुन रहे हो रहनुमाई छल करेगी सोच लो
ये मेरी आप-बीती है ये ख़ुद की आज़माई है

ये लोग बेच-बाँट कर धरोहरों को खा गये
बची-खुची महानता हमारे हिस्से आई है

जहां कहीं भी ज़िन्दगी ने मुझको आज़माया है
तो मेरे साथ में खड़ी मिरी शिकस्तापाई है

जो दिल धड़क गया कहीं तो दर्द फन उठाएगा
ये याद जाग जाये न अभी-अभी सुलाई है
-('मैं और बोगनवीलिया' से)

1 comment:

  1. ये लोग बेच-बाँट कर धरोहरों को खा गये
    बची-खुची महानता हमारे हिस्से आई है..........gagar cg sagar,,,,,,kamal e sir

    ReplyDelete