उठी जो शायरी अगर समझ ले लक्ष्मीबाई है
क़लम नहीं है हाथ में मिरे दियासलाई है
जो चुन रहे हो रहनुमाई छल करेगी सोच लो
ये मेरी आप-बीती है ये ख़ुद की आज़माई है
ये लोग बेच-बाँट कर धरोहरों को खा गये
बची-खुची महानता हमारे हिस्से आई है
जहां कहीं भी ज़िन्दगी ने मुझको आज़माया है
तो मेरे साथ में खड़ी मिरी शिकस्तापाई है
जो दिल धड़क गया कहीं तो दर्द फन उठाएगा
ये याद जाग जाये न अभी-अभी सुलाई है
-('मैं और बोगनवीलिया' से)
Monday, November 9, 2009
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ये लोग बेच-बाँट कर धरोहरों को खा गये
ReplyDeleteबची-खुची महानता हमारे हिस्से आई है..........gagar cg sagar,,,,,,kamal e sir