Tuesday, May 26, 2009

ग़ज़ल

वो तेरी उड़ती हुई ज़ुल्फ़ें झूलते हुए पाम
छुपा के रखी है मैंने वो डायरी में शाम

तुम आज याद बहुत आए मैं अकेला था
वही समय वही सिग्नल वहीँ था ट्रैफिक जाम

ये पोस्ट हो नहीं सकते ये आके ले जाओ
कुछ एक लम्हों के नीचे लिखा है तेरा नाम

ये चील-कौओं के जैसे जुटे हैं बीते पल
मचा है ज़हन के परदे पे बेतरह कोहराम

कहीं से उभरा तेरा चेहरा मेरी नींद गई
ये सपना हो नहीं सकता ये था कोई इल्हाम

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