Tuesday, May 26, 2009





















हर शाख-ए-फ़न अशआर से महका सकूँ तो बात है
और बस्ती-बस्ती ये महक फैला सकूँ तो बात है !

आने लगी है गैब से अब डाक तो अशआर की
ये चिट्ठियाँ घर-घर मगर पहुंचा सकूँ तो बात है!
सतीश 'बेदाग़'

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